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चिंत्या का सबै सरे परत परत विकास
पालित मूरिनी परे विद्या सिद्ध आकार अंत में कवि नवकार के प्रभाव से मरता वाक्यों की पुष्टि करता है और सबके लिए नवकार के पहात्म्ब को स्पष्ट करता है।कवि का नाम रचना के मन में स्पष्ट होता है।रचना की पाया अपांच प्रभावित प्राचीन राजस्थानी लोक भाषा है। यही कारण है कि यह पहात्म्य बाज भी रोक कोक निवारण करता
मा जैन जनता के कन्ड का हार बना मा प्रत्येक दिन हर एक केन इसका एक पारायण करता है और इसके बस से उसके रोग शेक मष्ट होते है।
गुरु जिमयसह सूरि भने सिव पुरका कारण परय विरम मम रोग सोग मह निवारण बलम महिवाल बन महर बार इक मिल्स
पंच परमेष्टि मंघह तपी सेवा देन्यो नित्य इस प्रकार रचना लोक भाषा का प्रीति भाइयोपान्त विद्यमान है।