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________________ ५५ मिश्रण, पाठों के मिलान लिपिकारों की त्रुटियां, प्रतियों का वंश निर्धारण, पुनर्निमाण तथा पाठ सुधार आदि पाठ विज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों का प्रयोग करने पर ही इन कृतियों के मूल अथवा सम्भाव्य पाठ तक पहुंचा जा सकता है। आदिकालीन हिन्दी जैन कृतियों में कई कृतियां प्रकाशित है उदाहरणार्थ- प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह परतेश्वर बाहुबली रास, त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध, प्राचीन फागु संग्रह, • नर नारी संबोध, गुर्जर रासावली, प्राचीन गुर्जर काव्य, ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, ऐतिहासिक जैन काव्य संचय आदि। परन्तु इनमें कुछ कृतियों को छोड़कर अधिकांश पाठों के सम्पादन अवैज्ञानिक है। अतः पाठ विज्ञान के विद्वानों का ध्यान लेखक अत्यन्त विनम्रता से इस ओर आकर्षित करता है। इन कृतियों की भाषा का अध्ययन भी भी सम्भव हो सकता है जब इन कृतियों का सम्यक पाठ सम्पादन हो तथा इनकी प्रामाणिकता सन्दिग्ध न हो । यो प्रामाणिकता तो असंदिग्ध है ही क्योंकि एक ही मूल प्रति की अनेक प्रतिलिपियां विभिन्न भंडारों अथवा शाखाओं से मिलती है। साथ ही अनेक कृतियां ऐसी भी मिलती है जिनकी पुष्पिकाओं में प्रतितिधिकार का नाम, समय, रचना काल, स्थान सही रूप में मिल जाता है। अतः इन रचनाओं की प्रामाणिकता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लग सकता। साथ ही यह भी सम्भव है कि अनेक रचनाओं की परम्परा अनुश्रुतिबदूश होने से इनमें अनेक प्रसिद्ध अंड और भूलें हो। अतः इस और पाठ विज्ञान की दोष की प्रत्येक गुंजाइस है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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