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________________ नगर मगर सागर विछ, नर किनर वानर सरमच्छ हरि करि केसरि चामर चित्ररतन धम सय सहस विचित्र कंचषमय धय दंड विशाल, रयप पताका किंकिणमाल ऊपरि परम राउ भकुभ, कराई गयणि वहता रवि अंम एबई जिण हरु ताहि मन रमाइ संधिहि संधि मिली तिम किमह एक पिंड जिमि जाणइ सडू ठीक सिला सोवन थल अहू (३४-३७) जिमहर विज प्रतिष्ठा बंग हा भटापद तीरथ चंग तीरथ भगतिहि लायह पुदिध होइ सुभोदय संवा इद्धि इरिहि कलिमलकर मल जाइ काय वचन मम निर्मल थाइ इस प्रकार पूरी रचना में तीर्थ का महत्व, मूर्ति की प्रतिष्ठा करतेश्वर का प्रतिमा पूजन व उल्लास तथा प्रतिमा पूजन प्रभाव व अन्य का वर्णन है।रचना वर्णनात्मक अधिक है।काव्यप्रवाह गौण है। रचना साधारण है। अन्त में कवि ने बावन अक्षर का स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया है:जिम बावन अवर पाठसार, नंदीसर बावन जिण विहार तिम पावन पावन नव विस्त, दुनियमक निमुना एक वित्त कृति की पाषा रमल है, जिसमें कहीं नहीं अपांच पदों का प्रभाव है और देव सब राजस्थानी शब्द है।कृति एक दम साधारन है। निष्कर्षः १३,१४वीं और १५वीं शताब्दी मैं इन बक्क माडका और बावनी मक रचनाओं में प्रतिनिधि रचनाओं का यही इतिहास है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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