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उकार बहुला प्रवृत्ति लगभग समाप्त प्रायः है। उत्सम शब्द की अधिक प्रयुक्त हुए है। निष्कर्षतः ६८ कड़ियों का यह काव्य सावत: बहुत महत्व पूर्ण नहीं है। साधारण ही है।
अन्टापद तीर्थ वावमी।
भष्टापद दीर्थ बावनी बावनी संशक रचनाओं में सबसे पहली सं० १४८५ के आसपास की रचना है जो अप्रकाशित है।रचनाकार श्री जयसागर है।आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य को जयसागर ने लगभग ४० रचनाएं प्रदान की है। जिसमें अनेक स्तोत्र, स्तवन, कला, वीनंति, नमस्कार, रास, आदि काव्य स्म संशक रचनाएँ है। कक्क, मातृका परम्परा में यही एक ऐसी कृति है जो बावनी माम से लिखी मिलती है।यों अद्यावधि उपलब्ध कक्क मातृका संज्ञक रचनाओं में बावन अक्षरों का वर्षय विधान सो मिलता ही है परन्तु उनका नाम स्पष्ट रूप से बावनी नहीं मिलता।
__अन्टापद तीर्थ बावनी ऐसी ही रचना है जिसमें कवि ने पूर्व विरचित रचनागों की परम्परा में नवीनता प्रस्तुत की है।कक्क शिल्प की भाति इसमें कवि ने कमा: भार (वर्णमाला) से प्रारम्भ नहीं करके कुल ५३ पद्यों में ही सारा वर्णन लिया है। रचना की प्रति व प्रतिलिपि अभय जैन ग्रन्थालय में सुरक्षित है। रमना धार्षिक उदेस्य से लिखी गई है। कवि ने अष्टापद तीर्थ पर यह मावनी लिखी है। पूरा गव्य धार्षिक और वर्ष प्रधान है।
कृषिकार में प्रारम्भ में सरस्वती और २४ सिंडों की वन्दना की . एक सरसाद अतिम्य मुगावविय सवीबह महंत
श्री स्टापद वीर बनी बार विचारतरलिया भणी प्रारम्भ ही कवि मरस वाक्यों मा विबालकों द्वारा अष्टापद तीर्थ का सजीव परिचय दिया th
माम बरबर पति पुगिन्ध, मेवा मुर विदयारवर मिष विदि पाल की रिसोड, पुरि कियमणि धूम निवेस