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________________ ७१० क्क मातृका काव्य आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य में अनेक काव्य उपदेवप्रधान उपलब्ध होते हैं। कक्क और माका संज्ञक रचनाएं उपदेव प्रधान काव्यों की परम्परा के विकास में योग देती है। कक्क संज्ञक रचनाओं की परम्परा का उद्भव प्राकृत और अपभ्रंश में मिल जाता है परन्तु अवचितर रक्तावों में क्वक, मातृका शिक्षा की पद्धति प्रस्तुत की गई है। बालकों को जो आरम्भिक शिक्षा दी जाती है उसका प्रारम्भ कहां से हो, बालकों को सीखने में बरलता हो, तथा अवरों का साधारण ज्ञान उन्हें यथा सम्भव शीघ्र हो जाय इसी उद्देश्य को लेकर ये रचनाएं लिखी गई है। इस प्रकार की रचनाएं हमारे सामने तीन रूपों में आती है: (१) माका (२) कक्क (३) बावनी इन रचनाओं की एक शैली विशेष है। कक्क बावनी और मातृका काव्य रूप के रूप में भी रूढ़ शैली के काव्य कहे जा सकते हैं। परन्तु इन रचनाओं को वेसने पैर यह स्पष्ट हो जाता है कि काव्य क्यों का कोई भी प्रकार इनके अन्तर्गत प्रयुक्त किया जाता है। वास्तव में बावनी क्वक और माइका आदि एक ही शब्द के पर्याय है। महीन कृतियों का रम्य मिले है से इतर प्राचीन राजस्थानी या मी वराती में इस प्रकार की कई रचनाएं मिल बादी है। वही इन रचनाओं की शादि होने है।हिन्दी में मागे चलकर ऐसी होंगी नामों का नाम बहरावट के रूप में प्रचलित हो गया : के बाद से ही लिखी गई है। और नाम नवमी के पूर्व ही व्यक्त होता रहा होगा । देवो देवी रचनाओं का नाम स्पष्ट रूप में बावनी मिलने है। १- नागरी प्रकारिण पत्रिका: वर्ष ५८ अंक ४: सं० २०१० ५० ४२८ |
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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