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(५) पास बंध भइ मुलइ तोडिय, आपण पइ मापदं जिवि होडिउ
मोह पास पसरंत मणे, वर व रगण रव मच्छि देह मोह बंध वापंत भूक बंदत्त जिम कियइ न बुज्ड
बाहु साह गोयम तुहकमा ........ (२५) (१) दह भव विस बेलि मंडति विद्यम या विहरती
विवाह विषता फल उलमूली, सा तइ गोयम किम जनमली मइ विस बेलि भूल साणि सौहिउ, तर इत सेविस माहिन मोहित बेलि किसी पूटा इस केसी तक गोयम गुरु कहइ सुईसी भव विम विस वेलि मामिम्बइ, विमाभूल सवेगि साणिज्यइ
जंजगि विसय पिवास न डीया दोबि सुबन्नकार भव पडीया (३०) (७) यम तिणि तुर्रमम बढीउ, किहीउ माग न पडिड
मास तुरंगनि दमि बसि की तु तिषिर भाग म लीया भासक्सिाउ केसि पूछेइ, तर वसू गोयम उत्तर देह । चंबल चित्त तुरंगम जाणउ, सोइ जए कुदपी विसी आफ्ठ रामदमी बनु तिमवासि कीपर जिम भी बन्द्रिय माग न पीपल
साह माह गोयन तुइ बन्ना ......... (४) और इसी प्रकार सत्वर प्रत्युत्तर अती में पूरा काम बा । कवि मकर म मार्म, अंबर, सथा पेच ब्रों आदि की स्थिति समभावामाषा परत है क्या प्राबीम रावस्थानी भाषा के प्रयास की दृष्टि से रमा महत्वपूर्ण है।मामा मोया पन्ना-बम्बोधन गीड बैली में पूरा काम बसवा है। सैद्धानिक कायों में श्रीमोम सन्धि मात्वपूर्ण रचना है। जिसमें कवि ने मीत पनि इबारा धार्मिक, वर्गवार, ब्रम सम्बन्धी बाब दानिक बल्मों का स्पष्टीकरण किया है। सरायन सी और मौसम का बाद विस्तार से मिल जाता है। माय बापालयि रखा गया है भाषा में अपांव के इवों के साथ मा बोया की प्राचीन राजस्थानी ब्वों की ही बहुलता है।