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शीतला मंगल आदि अनेक रचनाएं १८वीं शताब्दी तक मिलती है और इसी प्रकार मराठी तेलगू आन्ध्र, कम्म्नड़, गुजराती आदि भाषाओं में मंगल काव्य मिलते हैं परन्तु उनका प्रारम्भ १७वीं १८वीं शताब्दी ही है।
इधर प्राचीन राजस्थानी या जूनी गुजराती में अनेक रचनाएं मिली है जिनकी परंपरा बड़ी लम्बी है। इन रचनाओं में जैन और जैतर दोनों प्रकार के काव्य हैं जिनकी संख्या १५० तक है और उनमें से अनेक जैसलमेर ग्रन्थ भंडार पाटन भंडार, श्री अभक्जैन प्रन्थालय, बीकानेर में सुरक्षित है। इनकी भाषा पुररानी हिन्दी ( पुरानी राजस्थानी या जूनी गुजराती है) है यह काव्य परंपरा २०वीं aarबूदी तक सुरक्षित मिलती है।
गुजरात में अधिकतर विवाह काव्य ही लिखे गए हैं। मंगल नहीं धवल संज्ञक रचनाएं १३वीं शताब्दी से प्रारम्भ होकर १७वीं तक उपलब्ध हैं। धवल या चौल रूप गुजरात की ही देन है। कुछ धवल नामक प्राचीन रचनाएं भी मिलती है। विवाह के अवसर पर मांगलिक गान, तथा उल्लासपूर्ण गीतों के लिए यह शब्द प्रयुक्त होता है।
मंगल काव्यों का प्रारम्भ १६वीं बताब्दी से ही मिलता है। ये काव्य मराठी मावि प्रादेशिक भाषाओं में खूब लिखे गए जो २०वी शताब्दी तक उपलब्ध होता है। राजस्थानी में १६वीं शताब्दी के बाद भी श्री मंगल संज्ञक काव्य मिलते है। जिनकी सख्या बहुत बड़ी है। इन काव्यों का विषय वैष्णव धर्म से सम्बन्धित terest आदि तथा जैनैतर अन्य सामाजिक स्पों में भी मिलता है। इस प्रकार मंगल और घवल सैशक जितनी भी रचनाएं मिलती है मे बहत पुरानी नहीं है। जहां इन रचनाओं के वर्य विषय और विश्व का प्रश्न है ये रचनाएं एकदम बेलि या fareer in रचनाओं से मिलती जुलती है। काव्य रूप में वैभिन्य प्रस्तुत करने के लिए ही इनका नाम अलम रक्खा गया है।
१- भारतीय साहित्यः जनवरी १९५३ ० २३९-१३१/