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बहिन उतारह ठूण स्वामी साच सलूण, पूठिई धूलही ए गाई धउलहीए आविउ अमरह राउ, वलि निसामे छडि राजा वासुकिए,आविउ आस गिए
ग्रह तारा रवि चंद, आवइ अप्सरवूद आप दिउ मनुए, मिलिउ त्रिभुवनु ए वर्णन की अलंका रिकता स्पष्ट है। लूप उतारना एक राजस्थानी प्रथा है जिसमें वर के विवाह करने पर नजर न लगे इसलिए बहिन उस पर ममक उतार कर अग्रिन में डाल देती है।
____ वस्तुतः कृति में पशुओं का दन सुनकर नेमि के विरक्त होकर चले जाने पर राजमतीबद्वारा किया विलाप बड़ा हवयकारी व करम है- राजमती ने नेमि को कड़ी देर से एकटक निहारा था सहसा इस मयानक अप्रेत्याशित विधून को कोमल नारी नहीं सह सकी। व्याकुल होकर धरती पर गिर पड़ी, पछाड़े खाने लगी। सखियों ने बदन जल छिड़का, कवली दल से व्यजन किया, चैबना आने पर राजुल विलाप करने लगी, कंकण तोड़ दिए, साती पर का हार उतार कर *क दिया. हे मेरे जीवन आओ। आओ) मे भार तुम ---- है पपीहे --- पि पिउ न बोलो, क्यो कि पिठ तो स्वयं ही मेघ के पास चला गया है, अदृश्य हो गया अब तो बिजली मी निश्वास निकल रही है। आसुनों से सरोवर भर गए है. हे इंस) (जीव) अब उड़ जाओ। प्रियतम दो सिद्धि रमणी में रम गये और अपनी प्रीत भूल गए हे प्रियतम माठ मवान्तरों का नेड भन आकर क्यों तोड़ते हो। राजमती जल विहीन मछली की पाति तड़पने लगी।वर्षन का पद लालित्य, कसम विप्रलम कवि के विविध पकों और उत्तवाओं के टूवारा निखर उठा है। देखिए:
राजमती बाला विविह परि विलपति पति वियोगे अपार रे फोड़ा कण विरह-कराठी रालीय उरतणो हार रे धार चार गाइ जीवन मोरडा मोरहा वासिम वासि रे प्रीय प्रीय का करिव पापीयड़ाग्रीयड मेहनइ पासि रे खसी बीच चबम बलि काली दल की वार बलि बेखन जाषिउ वलिल यादवराउ