SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 659
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तरीय पलामा गयर गुडहु कालम हुइ राम्बत चना रहिवर साजहु गयवर गुरह सज पुड आज रणवभिडड रावत कर साजहु करवाल, पाणुक कर पशुह टकार सपाल अभीषणराउ दुइबल पुइनन सुपा ठाउ घोळ पुर लइ उछल बेह, जिमि गाजहि मादो केम मेह 'चिन्ह बार दीसह वरंत, जापी दावानल कर (डि) निमर्जत चतुरम दल भयो सनुत, पण बैग रण अइ पहुँत आवत दढ़ दी अथवा डीह लोपी ससि भार हा विया वारि पिडा दावीर, वरमा वाण सधण जापी नीर वह सहच्यारिवाय पहरेइ, 15 से आठ संघाण करे। वह सोलह परि मैलइ चाउ वह बत्तीसन मुभा गाउ बोरवीर सरे समराक मे दुश कर संभाण इसी माति श्री कृष्ण और प्रधम्म बुध के वर्षों में कवि का मन खूब रमा है। हाधियों की गर्जना घोड़ों की हिनहिनाहट, तलवार धनुष गदा व आदि वस्त्रों के प्रयोम आदि वर्णन प्रभावशाली है। प्रत्येक अध में कवि ने रहिवर साग गम्बर गरा, नाह मुहंड माजा रण मिडउ- पक्तिनों से बुध का भी गमेश किया कवि की श्री कृष्ण प्रद्युम्न अध में उत्साह की भूमिकादेशिए: आयड भय मुडर र चलइ, बाल के विलक्षाती करइ के कर पाया करवा साजिल विया और माथे मेवर पुढी, पुटर मारिप बहा के तुरीन पारालि, मे मुहर साजिरव बढा टाटना ) मा टोपा देह कोर गेड के कर बार कोर अविर नीका मानि कोर सम्हारा की कोर करिमा बाहरी
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy