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________________ परमहंस नामक नायक का चरित्र वर्णन किया है अत: यह काव्य का परमहंस प्रबन्ध नामकरण भी सार्थक ही लगता है। त्रिभुवन दीपक भी उतना ही सार्थक है जितना परम हैस हंस प्रबन्ध। क्योंकि इसमें भी तमसान्न त्रिभुवन में कवि ने दीपक जलाया है। निस्संदेह यह काव्य मानव जीवन को माया रानी के फेरे से बचा कर भास्मोन्नति को बहुत प्रशस्त कर दिया है। त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध माह भटके प्राणी को सत्पथ की ओर सर करता है।यह मत की असत पर विजय है। शरीर की प्रवृत्तियों के फेर में पड़कर मन कितना गिर जाता है पर सत्प्रवृत्तियों मे वा पुनः रास्ते पर आ जाता है। रूपक यो पर विवार करने से पूर्व यही म काव्यों की परंपरा पर संक्षेप में विनार करना आवश्यक प्रतीत होता है। किसी बात को माने दृष्टान्तो वारा पुष्ट करने के लिए ही कवि मक पद्धति का सहारा लेता है। इस रूपक का सफल नियोजन एवं निगह उत्कृष्ट कला है। उपक अन्ध हिन्दी साहित्य में बहुत ही कम संख्या में उपलब्ध है। उपर काव्यों की परंपरा का उभव संस्कृत काव्यों सेही हुआ है। संस्कृत भाषा में इस प्रकार के काव्यों का श्री गणेश नाटकों में अधिक देखने को मिलता है।संस्कृत में मिलने वाले काव्यों की नामावली इस प्रकार है. संत साहित्य में- १०वीं बवाब्दी की उपपिनि भव प्रपंच था। कृष्ण मिश का • प्रबोध चंद्रोदय नाटक। यापाल का • मोडपराजय नाटक। बटनाव का . मन्य धोदय। अनंतनारायण रिका-माया विजय। बादिचन्द्र का • भान पूर्वोदय। पदर का . मान चन्द्रोदय । भानंदराम भी का. विद्या परिपान और बीवानंदन नाटक जयदेवर का . प्रबोध चिन्तामणि? आदि संस्कृत की
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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