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महत्व बतलाता है। जैनियों के समाज में धर्मवील-आचरण और तप वितिक्षा को बढ़ा उच्च स्थान प्राप्त है। कवि ने सुभद्रा के नाम से इत सत्य का प्रतिपादन क्यिा। रचनाकार ने पूर्व भव त्या कर्मा के प्रभाव का विस्तार से विवेचन स्पष्ट किया है। सुभद्रा सती की पूजा भाग पी जैन समाज करता है। जैन साहित्य में सोलन मतियों के वरित मिलते है जिनमें सुभद्रा का चरित बहुत महत्व का है।कृति के रचनाकार का नाम अमान है
क्या प्रवाह की दृष्टि से रचना में पर्याप्त सरसता विद्यमान है। कमि ने सुभद्रा के इस वरित काव्य को श्रवण करने का फल नवकारमंत्र की प्राति भाग लिक
और उत्कृष्टतम बताया है 11-01 था की सरसता का निर्वाह करने में कवि ने अमेक सुन्दर दृष्टान्तों का सहारा लिया है तथा विभिन्न अन्याओं का सहारा लिया है । रचना की क्या का संक्षिप्त धार इस प्रकार :
सुभद्रापा नगरी के जैन श्रावक की पुत्री थी उसकी साम नारायण की उपासना करती थी और सुभद्रा पार्श्वनाथ को मानती थी। सास ने उसको जैन धर्म शलाकर नारायण की उपासना करने की बाध्य किया। पर वह अडिग रही। दोनों में इसी बाब को लेकर अनबन रहने लगी।एक बार सुभद्रा के यही पक जैन मुनि भाये। उनकी बार दिनका इस बाने से पानी कर राति भावरिक हो सुभद्रा ने पुनि की बाल मन को निकाल दिया। बार को यह अच्छा नहीं लमा उसने उस पर बारित सम्बन्धी लिया दोषारोपण किया। सुभद्रा में इसी कलंक
मालतीन उपवास करके रखा मकार मंत्र का जाप किया। शमन देवी प्रक्ट हुई शासकहने पर उसने अपने सतीत्व का परिचय निका देवी की कृपा से नगर के बन्द प्रचीती वारों को बोलनरमा बने सूबर से चलनी में भर कर कूर के पानी निकर दिया और अपने सतीत्व को सिदध कर दिखाया। राजा ने नसको बसम्मान दिया। बाद में भी अत्यन्त उसको पुनः घर में स्थान दिया।
या का सार यही है। कवि ने इसी क्या इस को रोपाई में विकसित