SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | आभार | इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग में स्नातकोत्तर शिक्षा ग्रहण करते हुए हिन्दी साहित्य का इतिहास कई बार पढ़ना पड़ा। इस अध्ययन में आदिकाल के संबंध में कई बार निराशा इस लिए हुई कि हिन्द साहित्य के आदिकाल अथवा शुक्लजी के शब्दों में वीरगाथा काल के साथ न्याय नहीं किया गया। अतः यह धारणा दृढ होती गई कि जिस वीरगा काल के पूर्व अपभ्रंश साहित्य की सम्पन्नता विविध काव्य रूपों और परम्प के रूप में इतनी अधिक सक्षम रही हो, उसी साहित्य का परवर्तीकाल इतना अधिक दरिद्र नहीं हो सकता। यह निराशा इसलिए और भी हुई कि क्ल द्वारा जिन बारह वीरगाथा कालीन रचनाओं का उल्लेख किया गया था उनको विभिन्न विद्वानों ने प्रामाणिक सिद्ध कर दिया। बहुत सम्भव है कि स्वयं शुक्ल जी को भी इनकी प्रामाणिकता में सन्देह रहा हो, परन्तु की तत्कालीन परिस्थितियों में इस संदिग्ध सामग्री का आकलन करने के अ और कोई मार्ग भी नहीं था। शुक्लजी ने अपनी विवशता को स्वतः इन मैं प्रकट किया है-" इसी संदिग्ध सामग्री को लेकर जो थोड़ा बहुत विचार होता है उसी पर हमें सन्तोष करना पड़ता है। इधर वीरगाथा से इतर सामग्री के साथ शुक्लजी का समझौता न मका और उन्होंने बहुत सी सामग्री को धर्म निरुपण करने वाली और साम्प्रदायिक कहकर हटा दिया, एवं उनकी प्रवृत्तियों पर विचार नहीं वि उनके शब्दों में सिद्धों, नाथ, क्या जैन कवियों की उपेक्षा स्पष्ट व्यक्त है क्योंकि लगा कि उनकी रचनाओं का जीवन की स्वाभाविक सरणियों, अनुभूतियों और दवाओं से कोई सम्बन्ध नहीं है, वे साम्प्रदायिक शिक्षा मात्र है, मतः उदूध साहित्य की कोटि में नहीं आ सकती। उन रचनाओं
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy