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३५३ अम्हि कुण भारगि अनुसरलं ए इंगरि अपरि बलतइ देखई पा हेछिन गपहलाई भापण भावा पण ए देशीय थोड़ा दोक जनेर विस्तारीय महि कहिइ अनेकन जे गुण हुई है आबई
परम भारग घरम मारग हुवा महु मेउ वे पुखि बई कहिए धर्म भागु अम्हि कह सक्स आपि प्रशंसलागि सडक अवर धम्म पुहि कहा कचर अंक का बाड़ी आविग वेडि लग जामहार नयरह पणी वन दिसाउइ मण साच कोई सारु कोई बोलति सारइ राइ कोइ नवि कहकपट सहूइ पतीजा पेश अभयकुमार जिम धरम दैभि बंधीय लीज का वचन बोलइ जिके माया रचिहं अपार
बका वेणि काइ बे िमस बेसार द्रो मित्र मात्र पुस माइबाप मुल सिह या देख इब्ध हरि वावरा, कोष बमले न देखाई नाव बाष कुल गुरु पी भानइ ममि भाग सरक भाव विस चालना देली हाक बोलिपीन का मति मिली नोड
मररमा पनि दुखिर सा कोई (वस्तु 10-10) काव में काबोली उपशात्मक और सचिव है। प्रस्तुत काय जन भाग
लिन समाधी मस स्थितियों और बाबानों का लोष कवि में बागमवारिक जीवन की वापी एक दम बानियों लिल कादि में एक अत्म कर दिया है। माना गरमा नाकारिता