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________________ ३११ वर वत्था भरणेण परिय मगूगण दीप जण धवलइ भुवा जमेण अपरि साइ हरिपाल जिइम नाचा अवलीय बाल प सबद नागा सुपरे परिपरि मंगाचार परि परि शि भक्यि उबवड कति मालक पाट विल विणकुशल मुरि जिन शासपि भार्य, जमकर जिम पदम सूरे जिम तारायणि चंडु सहसमयप उत्तम मुरह चिंतामणि रयमा सिम गुरु गुम्यउ गुणा नवरस देशवाणि भयंजलि के नर पियति भनुय जम्म सारि सहा कि इन्दु कलिवित जाम गया पति सूर परमि जाम थिर मेर गिरि विहि संघा संजत्तु वाम जया जिपपवम सूरे इस प्रकार उक्त उद्धरमों मे कति के आध्यात्मिक विवाह का महत्व समझा जा सकता है। काव्य अधिक सुन्दर नहीं पर भाषा की सरतमा व समी इन्टिके महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार का लिखित कविका जिनमरि पट्टाशि मिला है। सीपीसी बरा या बस्तु जिप, और वर्षमा पनि बादि दोनों गाणगा वियपी टा ।बोनों रमा गया वीं सादी गतराम प्रतिनिधिसी।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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