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गया है।
ए राज मुडेयह जाई. रक्सर या संधु भवाई ए राजो देसी मुषि सी
सो पासय सिब मुबई हाती वस्तुतः सन्धि कालीन रामों में पाया की दृष्टि से पसी कृतियां विशेष महत्व की हो सकती है। इनमें अपर कालीम प्रयोग और शोक भाषाओं के बीच की। संक्रान्ति की स्थिति स्पष्ट होती है। अलंकार आदि की इम्टि से कृति का महत्ब गौण है।
वों का यह राम निवासी कवि ने गय सुकुमाल का परित वर्णन करने में ही सारा चरित गीत तिखा है। इस प्रकार यहाँ तक आते आवे या स्पष्ट हो जाता है कि राम के रचना उद्देश्य में केवल नृत्य गान उल्लास कीड़ा भावि न रहकर उनमें क्या तत्व का पूर्णतमा समावेश हो गया था। इस तराराब करबमाओं की बस्तुस्थिति कालान्तर में बड़ा परिवर्तन हो
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