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अतिरंजना मिलती है इसका मूल कारण कृतिकार का मूलतः कवि होना है। उसकी ऐसी कहा कपना प्रधान अतिश्योक्तियां कृति के काव्यांशों में भी देखी जा सकती हैं।
रचना में कवि ने पहले युद्ध की साज सज्जा का वर्णन किया है। आदर्श वीरता भी कहलाई जा सकती है जबकि प्रबल के आक्रमण का प्रत्युत्तरउतने ही सक्त रूप दिया जाय | कवि ने अपने मात्र दावा को प्रतिबन्दी शत्रु मा के सुल्तान की सेना का परिज्ञान करने के लिए रचना में सुल्तान की सेना का वर्णन पडले किया है।
रा के प्रारम्भ में ही रचनाकार अपना नाम स्पष्ट कर देता है। वर्णन की प्रासादिकता तथा सरसता उसकी काव्य क्षमता के साथ मम सुषमा का परिचय भी देती है आश्रम दाता और कवि जीवन की ओर संकेत करता है :
। अथवात ।।
बेकसीह ने पार्यो।सूर सिंहा इति भावय। सूरक्षिता इति काव पंचामृत अभी परगरौ । महादान आछ । दूध माहि साकार है । सोमो भर सुवास। एक अचल भरौं सिवदासु । चारण कहै ए वही वाडाई तो आपने पा बुधई नहेप वरेहि ज कारमै । भमिति राज सभा सहित सु जिस द गइ। कवि कवि कवै जमैइ । (८-१)
दोनों की कवन देखकर दोनों कों की शक्ति की परवाना प्राप्त करलीजिये नेतान की नाका न पहले और भवदास की देन में सढ़ने वाले बयोगी वा राजा वृद्धि दास तथा विभिन्न राज
या हमारे क्यार मर वाण हिन्दु मुसलमाच । राव बाप हूं गाड़ने को बुरा खोडा समयड़े। जो हूं पढ़ पोलिय गोव्यार कम उनके बकरे सौ उमरी भरे तो मरी गढ़ आधारी, रावा बारी!
जन्म में इन्प्रादात्मक मध्य की छटा दिखाई दे रही है। वाक्य छोटे और वर है के कमरों में अधिक से अधिक अनि का संभार है। रचना भाजने से पूर्ण है वर्णन केली प्रासात्कक एवंज्ञावाविक है। सेना के हि का नुमान व्याया वा है।