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________________ १९४ करि जुको स्वर्ग लोक प्राप्त करि जुको ना मनुष्य के मन लन मात्र ब्रह्म के विचार बैठो।------- पराधीन उपराति बंधननो ही सु ाधीन उपराति मुक्त नाही, पाहि उपराव पाप नाही, बचाहि उपरीति पुन्नि नाही अम उपराति मल माही, निहि क्रम पराति निरमल नाही. दुक उपाधि अवधि नाहीं निरदोष उपराति सुधि नाही, पोर उपराति बत्र नाही. नारायण अपराति ईघर नाही, निरंजन उपराति ध्यान काही श्री गुरु परमानन्द तिनको दंडवत है। वैसे परमानंदा बानंद स्वरूप है शरीर जिन्डि को किन्हीं के नित्य गाये है सरीर चेन्नि बरु आनंदमय होत है। ज मैं गोरष सो मांदर नाथ को दंडवत करत है से वे मदर नाय? आत्माको दि निश्चल, अंबड करन जिन्ह को अस्मूल द्वार है छह बैंक विनि नीकी तरह बराने व गुज काल क्ल्प इनि की रखना तत्व जिनि गायो ।सुगंध को समुद्र तिन्हि को मेरी दंडवतास्वामी तुम हो मजगुरु अम्है तो सिक सबद एक पूशिया क्या करि कडिबा भनिन करिया रामों उक्त उद्धरणों को १४वी शताब्दी कागद्य माना जा सकता है परन्तु बालोगे को जब तक गोरखनाथ के विषय में पुष्ट तथा प्रामाणिक वलय नहीं मिल जाते, गोरखनाथ के पदय को संदिग्ध ही कहते है।जो भी हो, इस गानों को हिन्दी के प्राचीन मडूब की परंपरा में बोम को वागाय ल किया जा सकता है। नामरी प्रचारिणी सपा कापी के एक मार्षिक विवरणसटि पाय के नाम पर मिला योग साधा रमाका महास बधा तिपिकाल सन् .. और ब दानों का वर्णन हैएक उधरण देविय गया यंती पहानि इमिग्रा बाप प्रभावबोलीवेनहम पर ग्रहब कीला मार बोली।-- परम पूज्य स्थान पर थे १- रिवी पाल और बारि - बाग विकास हरिबीच बिवी • wan. ... मी नागरी प्रचारिणी मा।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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