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प्रस्तुत बचना के बाद इस प्रबन्ध में तीन महत्व पूर्ण परिशिष्ट रहे गए हैं। प्रथम परिशिष्ट में जादिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की प्रतियों में प्रयुक्त कुछ अवर और अंकों के चित्र दिए गए हैं। इन अक्षरों से जैनियों की तत्कालीन प्रतियों की feeree का सामान्य ज्ञान प्राप्त हो सकेगा। साथ ही कुछ महत्वपूर्ण प्रतियों के fer परिचय सहित दे दिए गए है जिनसे प्रतियों की प्राचीनता को समझ जा सकती है और जैम प्रतियों में प्रयुक्त अक्षरों, अंकों और विशेष चिन्हों को देशा जा सकता है। ये प्रतियां विभिन्न भंडारों की है। दूसरा परिशिष्ट जैन और जैनेसर गद्य तथा पद्म की इस्ततिक्षित प्रतियों की सूची का हैजिससे यह स्पष्ट होगा कि ये कृतिका काव्य रूपों में कितना अधिक वैविध्य लिए हैं क्या संख्या में कितनी विशाल है। तीसरा परिशिष्ट संदर्भ ग्रन्थों की सूची तथा विभिन्न जैन भंडारों की नामावली का है जिनसे अजैन एवं जैन साहित्य पर आगे कार्य हो सकने में सहायता मिलेगी। इस तरह पूरा प्रबन्ध तीन भागों में विभक्त कर दिया गया है। प्रथम बाग में प्रथम पान अध्याय है। द्वितीय भाग में काव्य रूपों के विस्तृत विश्लेषण वाले ६, ७, ८ और १ अध्याय है। अन्तिम अथवा तृतीय भाग में अन्याय १०, ११ तथा १२ है। जिनमें कथा परंपराओं और प्रयुक्त छंदों का मौलिक विवेचन निषित है। इन विभिन्न अध्यायों के बध्याय द्वारा शोध की अनेक विज्ञानों की ओर संकेत किया जा सकता है।
(९) शोध की नई विधार्थ
उपर्युक्त अध्ययन के आधार पर संबंधित अनेक कई दिशाओंों की ओर इंगि किया जा सकता है। पुरानी हिन्दी का उदभव और विकास वादिकालीन हिन्दी tent की ET, हिन्दी के अधिकाल के रास, का प्रवन्ध, परित काव्य, मुरुक्क काव्य, शृंगारिक सडकाव्य तथा इन रचनाओं का वैज्ञानिक रूप में सम्पादन शोध के नवीन है, जिन पर कार्य किया जाना परम आवश्यक है। साथ ही बा के साथ साथ कालीन हिन्दी जैन सावि पर भी शोध का कार्य डोना वेवित है।