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आदिकालीन हिन्दी जैन रचनाओं में प्रयुक्त विविध शास्त्रीय व देशी मित्रच बाल वृत्त या मात्रावृत्त और वर्ष का अध्ययन शोध का विषय
मात्रिक और देशी ताल वृत्तों के मूल में गायक चारणों का भी महत्वपूर्ण बोग रहा होगा। क्योंकि वे भी विभिन्न रागों में देशी छेदों को गामा कर रक्ता किया करते थे। अतः इसका प्रचार वारणी वेली के जैन अजैन काव्यों द्वारा खूब हुआ। मामा और वाल वृत्तों में यद्यपि पर्याप्त समानता है परन्तु फिर भी कि अन्तर है। इस सूक्ष्म अन्तर का गण, यति, तथा अन्य शास्त्रीय तत्वों का विश्लेषण करने के लिए इन रचनाओं के विविध छंदों से बड़ी सहायता मिलती है।
असम और एक बहुत महत्वपूर्ण बात इन छंदों के विषय में है इनका परवर्ती कालों पर प्रभाव में प्रभाव दो रूपों में मिलते हैं:
१- काव्य पद्धति में तथा
२- पद्धति में
१- काव्य पद्धतियों में दोडा पड़पति, दोहा- चौपाई पद्धति, छप्पय-पद्धति तथा पद और गीति पद्धतियां है।
२- पति - वर्षिक और मात्रिक दोनों प्रकार के आ जाते है।इन दोनों पद्धतियों का प्रभाव परवर्ती हिन्दी काल afrate, रीतिकाल तथा यहाँ तक कि आधुनिक काल तक देखा जा सकता है। इन पद्धतियों और छंदों के प्रयोग के लिए परंपरा के उद्गम का श्रेय अपश
1. A person with a trained ear can easily distinguish between a fals Tratta and a Matra Vratta merely by singing them. The nature of the particular Tala can also be similarly know. I have said above that the matra Vrattas owe their origin and dovlopment of the 11terate bards, but this need not be too strietly understood, the more cultu. ed and less gifted among the popular bards too may have substantially helped in this direction.