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(२३) फाट्ट
कवि ने काबर छंद का मौलिक प्रयोग किया है। यह तालवृत्त य है। रचनाकार ने इसका प्रयोग (३५४-२५८) कड़ियों में किया है
पाटू साडी कापड़ा अनs नवरंग घाट
प जन् मामिति एमनित उचाट
टीजर जड पोसs हुई पोकळं दैवह हाथि
तर ही गढ दे करी, लागा भरडा साथ (२५४-२५५) कावट छंद अन्य कवियों में उपलब्ध नहीं होता ।
(२४) दुपद
फावट के अतिरिक्त एक प्रसिद्ध बंद हृषद या ध्रुपद मिलता है ध्रुपद राम प्रसिद्ध है। कवि ने इसी राम के नाम से अनेक कड़ियों में प्रयुक्त छेद को वि हृपद के नाम सेप्रयुक्त किया है। त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध में यह पद (९-४६, ४८-५४ ५६-३१, १०६-१२८ २३४-२३९, २४८-२५३, ३१८-३२८, ३३९-३५७, ४०४१४१४ तथा ३१८ से ४३२) कड़ियों में प्रयुक्त किया है । रचना में सबसे प्रमुख छंद यही है। यों बचाई, दोडा, धम्मय, तथा वस्तु छंद का भी बहुत प्रयोग किया है। इस कृति में प्रयुक्त इम छंदों में कवि ने और सरस्वती क के अन्तर्गत देवी चौपाई का प्रयोग किया है। हिव काव्य के अन्तर्गत उपजाति द मिलता है। पचर में उपेन्द्र का और इजा सम्मिलित है। लाकार श्री जयदेवररि ने संस्कृत के प्रकांड विद्वान होने से भर मेल वर्षिक इत्तों का गामातों के साथ सकल प्रयोग किया है।
इस प्रकार राम और बालों के आधार पर कवि ने देशी छेदों के साथ साथ aff geal का भी व निर्वाह किया है। त्रिभुवन दीपक प्रबंध द वैविध क्या रामों और डालों में विविधय प्रस्तुत क्या है।
:- रेमसागर नै विकाश-:
(वा)
इस रक्षा को कवि ने बीन डों में लिहा है।तीनों में का विलयम इस प्रकार है: