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मित्र वर्षिक छेदों में भी कवि का मौलिक प्रयासम्टव्य है। इन मिश्र छंदों का विश्लेषक इस प्रकार यिा जा सकता है:प्रथम रोषक्तियों
अन्तिम दो पंक्तियों मेंप्रथम भाग..पद
४८ रथोधता इन्द्रबत्रा . रथोड्या स्वामवा
ot रथोता स्वामना द्वितीय भाग
१४ रथोड्या स्वागना २० रथोड्या स्वागता म रथोद्धा स्वागता १८ स्वागता रथोद्धमा ६६ मोदषया स्वामवा
सिवितावित स्वायना इस कति में सबसे प्रमुख दि स्वागता है।
इन वर्षिक छंदों के अतिरिक्त जिनदत्त चउपद में नाराज और बईध माराम स्था उपेन्द्र बना और अशुचिताविनंती में ( . सब इनिविलंबित सथा रंगसाभर नैमिका में अटप, विक्रीडित (बड़ी ) आदि प्रयुक्त है।
शास्त्रीय दृष्टि से इन दो का पाल किमिझायों में किया है। अब यही इन दो पर विजन को विस्तार देना नवित है। निशिष्टि प्रामा डिम्धी नि बिराटी केली कृषि, वो सबका प्रतिनियि ती
मी मनोमाने उच्चारण करने गौरशियन र मेने कारण किबो कठिनाई उपस्थित
१. बही
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