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चित्र दिए गए हैं। इन त्रिों से नियों की लिसावट व्या हिपि सम्बन्धी वोड-मरोक, भारों की बनावट, मागाई गादि बातों का स्पष्टीकरण हो पाता है। इन प्रतियों पर भी साथ ही सा दिया गया है। दूसरे और बीसरे परिचितों में तत्कालीन
प्र तिvिa प्रकाशित प्रति जैन और प्रतियों की सूरी या संदर्भ पन्बों की नामावली या देले विभिन्न कारों की सूची दी गई है।
माज जबकि । अन्ध समाप्त प्रायः है, यह जानकर अत्यन्त हो रहा है कि
बाबी दुवारा की गई सा-प्रदायिक, कोरी पार्मिक और उपदेश प्रधान रमायो मी हिन्दी साहित्य की अनेक ऐसी कृतिया उपता जिनका प्यार कर बादिकाल की सम्पन्नता पर दोष होगा है। प्रस्तुत
प्र मादिकाल न्दिी साहित्य के सम्बन्धी एक से मभाव की पूर्ति होगी, ऐसी आश है।
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निर२५जन १५
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