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समस्याएँ
विश्व में आज प्रमुख रूप से एकता के मार्ग में बाधा डालने वाली दो प्रकार की विचारधाराएँ हैं, एक है 'लोकतांत्रिक विचारधारा और दूसरी साम्यवादी विचारधारा । इस मतभेद को छोड़ भी दें तो एकता में बाधक तीसरा प्रमुख कारण राष्ट्रीयता है । प्रत्येक राष्ट्र एक राजनैतिक शक्ति का द्योतक है । यह विचार करना कि सभी राष्ट्र एक हो जाएँगे और राष्ट्रीयता से ऊपर अन्तर्राष्ट्रीयता को मानवता के हित में ऊँचा स्थान दिया जायेगा अभी असंभव सा लगता है; यद्यपि संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना का उद्देश्य यही है । किन्तु संयुक्त राष्ट्रसंघ का अब तक का इतिहास बहुत उज्ज्वल नहीं दिखाई देता । अभी जगत् में सारे देश स्वतंत्र रूप में राष्ट्र कहलाने के अधिकारी नहीं हो पाए हैं। बहुत से देश अब भी बहुत पिछड़े हुए हैं । कल यदि वे राष्ट्रों का रूप धारण भी कर लें तब भी राष्ट्रों में साँस्कृतिक अन्तर होगा । राष्ट्रीयता आज का युगधर्म है और यह युगधर्म प्रत्येक राष्ट्र का अपना धर्म है । इस युगधर्म का स्वीकार करते हुए राष्ट्र की समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया जा रहा है। समस्या का निदान यह है कि राष्ट्र के नागरिकों में एकता की भावना का निर्माण हो ।
'राष्ट्रीय एकता' में राजनैतिक एकता का भाव प्रमुख रूप से है । आज जब भी हम राष्ट्र शब्द का उपयोग करते है,