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आमुख
आधुनिकता और राष्ट्रीयता दोनों ही आज मानवीय मूल्यों को अपरिहार्य रूप में प्रभावित कर रहे हैं। इनके कारण हमारी आस्थाएं हिल गई हैं तथा जीवन में आतंक का बोध व्याप्त है। अपने परिप्रेक्ष्य में मैने इन कारणों पर विचार किया है। समय-समय पर कुछ पत्रिकाओं ने भी मांग की, जिसके कारण यह कार्य स्फुट रूप में होता रहा है। सन् १९६३ ई० से सन् १९७२ ई० तक लगभग नौ वर्षों में यह पुस्तक लिखी जाती रही है। पुस्तक के प्रकाशित निबन्धों का उल्लेख यथास्थान किया गया है । इस सारी सामग्री का मैंने पुनरावलोकन किया है तथा आवश्यक संशोधन भी। इस पर भी ये निबन्ध समय के अन्तराल से लिखे जाने के कारण काल बोध का प्रभाव पुस्तक पर है, जिससे मुक्त होना मेरे लिए संभव नहीं। बर्टेड रसेल ने मुझे आधुनिक जगत को समझने में सहायता दी है। इसी का परिणाम है कि मैंने समस्याओं पर नकारात्मक ढंग से सोचने के स्थान पर सकारात्मक ढंग से सोचने का प्रयास किया है । इस प्रयास में मुझे कितनी सफलता मिली, यह मैं विज्ञ पाठकों पर छोड़ता हूँ।
१५ मार्च १९७३.
राजमल बोरा