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________________ आधुनिकता और राष्ट्रीयता विस्तृत ज्ञान तो विशुद्ध प्राविधिक समस्याओं के समाधान में प्रवर्तित रहेगा ही। प्रकृति, मनुष्य तथा समाज की अविच्छिन्नता की विचक्षण स्वीकृति से ही केवल नैतिकता का विकास हो सकता है, जो धार्मिक तो हो पर कट्टर न हो, महत्त्वाकांक्षी तो हो पर भावुक न हो, परम्पराओं से बंधा न होकर वास्तविकता के अनुकूल हो, लाभों की गणना का रूप तो धारण न करे पर व्यवहार कुशल हो; स्वप्नदर्शी न हो पर आदर्शप्रिय अवश्य हो।" ' नैतिकता के वास्तविक स्वरूप का बोध कराता है। नैतिकता के प्रति व्यक्ति का झुकाव सकारात्मक होना चाहिए। नकारात्मक नैतिकता समर्पण और भयप्रधान होती है। आज सब से बडी आवश्यकता इस बात की है कि संसार के प्रति हमारी आस्था बढे, हम समझें कि जगत हमारा है, इसे स्वर्ग और नरक बनाना हमारे हाथ में है। बर्टेड रसेल के शब्दों में... 'समर्पण की नैतिकता के बजाय अभिक्रमणशीलता की नैतिकता, भय की नैतिकता की जगह आशा की नैतिकता और उन कामों की नैतिकता की बजाय जो नहीं करने है, उन कामों की नैतिकता की स्थापना करनी होगी जो करने हैं।' २ इस प्रकार के दृष्टिकोण को अपनाते हुए हमें अतीत के ज्ञान और अनुभव से पूरा पूरा लाभ उठाना है । बड रसेल ने मनुष्य की समस्त क्रियाओं को मोटे तौर पर तीन भागों में विभाजित किया है--(१) सहज प्रवृत्ति (२) बुद्धि और (३) आत्मा । इन तीनों में से उन्होंने आत्मा के जीवन को धर्म का मूल माना है । सहज प्रवृत्ति का जीवन वह जीवन है जो मनुष्य और निम्नतर पशुओं में समान रूप से देखा जा सकता है । इस जीवन में ऐसे आवेग सम्मिलित हैं जिनका मूल उद्देश्य सफलता प्राप्त करना है । ये आवेग मनुष्य में निहित पशु-प्रकृति और प्रतिद्वंद्वियों के बीच उनकी स्थिति को व्यक्त करते हैं । बुद्धि का जीवन ज्ञान की खोजवाला जीवन है। जिज्ञासा ऐसा आवेग है जिस पर सारा ज्ञान और विज्ञान स्थित है । बुद्धि का जीवन चिंतनप्रधान होता है । यह जीवन कुछ हद तक अवैयक्तिक होता है । आत्मा का जीवन अवैयक्तिक भावना पर आधारित होता है । धर्म का सम्बन्ध आत्मा से ही है। सहज प्रवृत्तियों और बुद्धि इन दोनों में सामंजस्य स्थापित करने का काम आत्मा का जीवन ही करता है । नैतिकता की १. मानव प्रकृति और आचरण -- जॉन ड्यूई, अनुवादक : हरिश्चन्द्र विद्यालंकार -पृ. ९. २. सामाजिक पुनर्निर्माण के सिद्धान्त-बट्रेंड रसेल-अनुवादक : मुनीश सक्सेना पृ. १७०.
SR No.010027
Book TitleAadhunikta aur Rashtriyata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Bora
PublisherNamita Prakashan Aurangabad
Publication Year1973
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Social
File Size10 MB
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