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८०/आधुनिक कहानी का परिपार्श्व
अज्ञेय की कहानियाँ प्रभाववादी होती हैं और वे किसी-न-किसी सामयिक सत्य की व्यंजना करते हैं। उन्होंने किसी प्रकार के दर्शन का आश्रय ग्रहण नहीं किया और न जीवन को वर्गीय खण्डों में बाँटकर देखा है। वे अपनी सामग्री अधिकतर दैनिक जीवन से लेते हैं । उनकी कहानियों में प्रतीकों, स्वप्नों, स्मृतियों और वातावरण के कुछ प्रयोग के साथ-साथ कोमल मानवीय प्रवृत्तियों का भी सुन्दर संवेदनीय चित्रण रहता है । 'अज्ञेय' ने अपनी कहानियों में मध्य वर्ग के जीवन की विषमताओं का वर्णन किया है । मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और उनके अपने व्यक्तित्व की छाप भी उनकी कहानियों की विशेपताएँ हैं। उनके कथोपकथन और भाषा में स्वाभाविकता रहती है। 'विपथगा', 'कोठरी की बात', 'परम्परा', 'जयदोल', 'हीलीबोन की बतखें', 'मेजर चौधरी की वापसी' आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। 'अज्ञेय' की कहानियों के दो वर्ग बनाए जा सकते हैं । एक वर्ग तो उन कहानियों का, जिनमें उन्होंने सामाजिक यथार्थ का उद्घाटन करने और मानव-सत्य को स्पष्ट करने की चेष्टा की है । इस दृष्टि से 'जीवनी-शक्ति' कहानी बहुत उल्लेखनीय रचना है, जिसमें एक भिखारी और भिखारिणी का परस्पर . प्रेम दिखाया गया है। वे अपना एक घर बना लेते हैं और एक नए मानव को जन्म देते हैं । दुकानदार और पुलिस वाले उनकी झोपड़ी बार-बार नष्ट कर देते हैं, पर वे उसे बार-बार बना लेते हैं । इस प्रकार जीवन संघर्ष में विजयी होने के लिए अपूर्व जिजीविषा भाव की अनिवार्यता को उन्होंने इतने कुशल ढंग से चित्रित किया है कि 'अज्ञेय' की सम्पूर्ण शैली से परिचित पाठक के लिए विस्मय ही होता है। इसी प्रकार उनकी शरणार्थी जीवन से सम्बन्धित कहानियाँ भी उल्लेखनीय हैं, जिनमें विभाजन से उत्पन्न परिणामों, विघटित मानव-मूल्यों एवं युग-बोध का इतनी सूक्ष्मता से चित्रण हुआ है कि सारी कहानियाँ मन और मस्तिष्क को चीरकर रख देती हैं । खेद की बात यह है कि इस प्रकार की कहानियाँ 'अज्ञेय' ने अधिक नहीं लिखीं, पर जो लिख हैं, वे नख-से-शिख तक चुस्त और दुरुस्त कहानियाँ हैं ।