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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/४६. प्रकार की थी। सैनिक वातावरण अथवा युद्ध की पृष्ठभूमि को लेकर मैंने आज तक इतनी प्रभावशाली कहानी नहीं पढ़ी। नई का दावा करने वाले कहानीकारों की पीढ़ी में स्वदेश पर तीन-तीन आक्रमण हुए-१९४७-४८ में कश्मीर पर पाकिस्तान का प्राक्रमण, १९६२ में चीन का नेका और लद्दाख पर आक्रमण और १९६५ में पुनः कश्मीर और छम्ब पर पाकिस्तान का आक्रमण क्या नृशंस हत्याओं, मानवसंहार और युद्ध की भयंकर गति ने हमारे किसी भी नए कहानीकार को प्रभावित नहीं किया ? अभी हाल ही में श्रीमती विजय चौहान की एक कहानी मुजाहिद' पढ़ने को मिली इसके पूर्व चीनी अाक्रमण के समय उनकी एक कहानी 'शहीद की माँ' प्रकाशित हुई थी। पर इन दोनों ही कहानियों में युद्ध का आभास है, युद्ध नहीं। इस दृष्टि से गुलेरी जी की 'उसने कहा था' कहानी आज भी महान है। नई कहानी को यह चुनौती स्वीकार कर गतिशील होना है।
सुदर्शन ने सामाजिक जीवन से सम्बन्धित कहानियाँ अधिक लिखीं हैं। उनकी कहानियाँ बड़े शांत और गम्भीर ढंग से आगे बढ़ती हैं । उत्सुकता और कुतूहल उनकी कहानियों में विशेष रूप से पाया जाता है। उनकी दृष्टि मानव-जीवन के साधारण पहलुओं की ओर गई है । उनकी कला का वास्तविक रूप हमें उनकी वातावरण-प्रधान कहानियों में मिलता है, जिसमें वे मनुष्य के सूक्ष्म मानसिक रहस्यों का उद्घाटन करते हैं । उन्होंने पुराण-शैली में सामयिक सत्यो की व्यंजना भी की है । चरित्र-चित्रण की दृष्टि से वे प्रेमचन्द के समीप हैं-यथार्थ से
आदर्श की ओर । उनके कथोपकथन सुन्दर और स्वाभाविक हैं और भाषा व्यावहारिक । 'परिवर्तन', 'सुदर्शन-सुधा', 'तीर्थयात्रा', 'फूलवती', 'चार कहानियाँ तथा पनघट' आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं । सुदर्शन की कहानियों की सर्वप्रमुख विशेषता उनकी संवेदनशीलता है। उनमें रसग्राह्यता उपलब्ध तो होती ही है, मर्मस्पर्शी प्रसंगों की अभिव्यंजना भी उन्होंने बड़े प्रभावशाली ढंग से की है। उनकी कहानियों में