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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / १५
उवर पाश्चात्य विद्वान भी देश की कला और संस्कृति का अध्ययन कर उसके प्रचीन गौरव का अध्ययन करने में लग गए । भारतवासियों को देश की प्राचीन ज्ञान-गरिमा की याद दिलाने में इस कार्य ने अच्छा योग दिया । भारतेन्दु के जीवन काल में तथा उसके बाद सब सुधारों और नई शक्तियों का यहाँ के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यिक जीवन पर प्रभाव पड़े बिना न रह सका । यातायात के साधनों की उन्नति में ब्रिटिश पूँजीवादी प्रार्थिक नीति का बहुत बड़ा हाथ था । किन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं है कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासक भारतवासियों की सामाजिक, राजनीतिक श्रादि उन्नति के लिए वास्तव में उत्सुक थे । वास्तविक उन्नति तो स्वयं भारतवासियों ने विविध नए साधनों से लाभ उठाने की चेष्टा द्वारा की । परन्तु अँगरेजी साम्राज्यवादी नीति ने परोक्ष रूप से भारतीय जीवन की प्राचीन व्यवस्था छिन्न-भिन्न कर नवीन समाज का निर्माण करने में सहायता की। लेकिन भारत ने जो थोड़ी उन्नति की भी, उसके लिए उसे कितना बड़ा मूल्य चुकाना पड़ा, यह विचारने की बात है । इन सब परिवर्तित परिस्थितियों, सुधारों और शक्तियों के फलस्वरूप हिन्दी प्रदेश में एक नवयुग का जन्म हुआ, जिसका जीवन और फलतः साहित्य पर प्रभाव पड़े बिना न रह सका । जैसा कि आगे स्पष्ट किया गया है, कथा साहित्य ने इन्हीं तत्त्वों से प्राण- चेतना ग्रहरण की ।
भारतवासी बहुत दिनों से अपनी स्वाधीनता खो बैठे थे । कोई देख-रेख करने वाला न रह जाने पर हिन्दू धर्म का ह्रास होने लगा था । जिस समय अँगरेज़ों का आधिपत्य स्थापित हुआ, उस समय हिन्दू धर्म शिथिल हो चुका था । ब्राह्मण अपने उच्चासन से पतित हो चुके थे और जिस धर्म के तत्वज्ञान के आगे संसार सिर झुकाता है, वे उसी को भूलकर दान लेने में ही अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ बैठे थे । लेकिन अज्ञान और अन्ध परम्परा से संवेष्टित प्रशिक्षित भारतीय जनता अब भी उनके आगे माथा टेक रही थी । यह जाति की दुर्बलता और