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श्री कल्याणकुमार 'शशि'
कविताके नये युगमें जिन कवि-हृदयोंने समाजमें प्रगतिको प्रेरणा दी, उनमें युवक कवि श्री कल्याणकुमारजी 'शशि' निःसन्देह प्रधान हैं । आज लगभग १५ वर्ष से 'शशि'जी काव्य-साधना कर रहे हैं; और उनकी प्रतिभा उत्तरोत्तर विकासकी ओर उन्मुख है । उन्हें आप कोई सा विषय दे दीजिए, वह अपनी भावुक कल्पना द्वारा सहज काव्य-सृष्टि करके उस विषयको चमका देंगे । कविका कार्य समाजके जीवनमें प्रवेश करके उसको साथ लेकर, उसे श्रागे बढ़ाना होता है । 'शशि'ने उत्सवोंके लिए धार्मिक पद रचे, फंडेके लिए गीत बनाये, महापुरुषोंकी जीवनियोंपर भावपूर्ण कविताएं लिखीं और समाजके नये भावोंको नई वाणी दी ।
अब वह कई पग आगे बढ़ गये हैं । श्राज उनके गीतोंमें विश्वका आकुल अन्तर बोल रहा है । वह कल्पनाको उत्तेजित कर, अलङ्कारकी सृष्टि नहीं करते; श्राज तो उनका हृदय वर्त्तमानको देखकर ही भावाकुल हो उठता है । वह अपनी नैसर्गिक प्रतिभाके बलपर भावोंको गीत-बद्ध कर देते हैं । हाँ, वह भाषाका लालित्य और भावोंको सुकुमारता जागरणके वज्रघोषी गीतमें भी क़ायम रख सकते हैं ।
जब हमने 'शशि' से प्रामाणिक परिचय माँगा, तो लिख भेजा" मेरा परिचय कुछ नहीं है । मार्च १९१२ का जन्म है । व्यापार करता हूँ-गरीब श्रादमी हूँ; बस यही !"
यह 'गरीब आदमी' कविताके जगत् में श्राज सारी समृद्ध जैन- समाजकी निधि है ।
श्री कल्याणकुमार 'शशि'ने जैन- महिलाओं की कविताओंका सुन्दर संग्रह 'पंखुरियाँ' नामसे प्रकाशित किया है। आपकी अनेक स्फुट, रचनाएँ पुस्तकाकार छप चुकी हैं। आप रामपुर ( रियासत ) में व्यापार कार्य करते हैं ।
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