________________
पंडित परमेष्ठीदास ' न्यायतीर्थ'
श्राप जैन समाजके युवक हृदय गम्भीर विद्वानों से हैं । श्रापने जैन- दर्शन श्रीर जैन साहित्य के मननके साथ-साथ हिन्दी भाषाके प्राचीन' और अर्वाचीन साहित्यका अच्छा श्रध्ययन किया है । आपकी प्रतिभा समालोचनाके क्षेत्रमें विशेष रूपसे सजग श्रीर सफल है । आपने जैनशास्त्रोंका मौलिक दृष्टिकोणसे श्रध्ययन किया है, और निर्भीकतासे उसका प्रतिपादन किया है । इनके विचार उग्र हैं; श्रोर जीवन सदा कर्तव्य-रत । समाज-सुधार और देशोन्नतिके लिए श्राप श्रौर श्रापको धर्मपत्नी सौ० कमलादेवी 'राष्ट्रभाषा कोविद', जो हिन्दीको सुकवियित्री भी हैं, अपना जीवन अर्पण किये हुए हैं । यह दम्पति स्वदेश प्रान्दोलनमें जेल यात्रा. कर श्राया है ।
श्रापकी लिखी हुई पुस्तकों - 'विजातीय विवाह मीमांसा', 'सुधर्मश्रावकाचार समीक्षा', 'दान-विचार समीक्षा' प्रोर 'जैनधर्मकी उदारता', श्रादि-ने श्रनेक विषयोंपर मौलिक प्रकाश डालकर समाजके विद्वानोंको नये चिन्तन र मननकी सामग्री दी है । श्राप जैनधर्मको ऐसे व्यापक रूपमें देखते हैं और उसे युक्ति तथा श्रागमसे इस प्रकार प्रमाणित करते हैं कि उसका भगवान् महावीर द्वारा मानव-धर्मके रूपमें प्रतिपादन या प्रतिष्ठापन स्वतः सिद्ध प्रतीत होने लगता है ।
श्रापका एक कविता-संग्रह 'परमेष्ठी-पद्यावलि' नामसे छपा है । श्रापकी रचनाएँ जनता और वर्गमें धार्मिक भावनाएँ और सामाजिक सुधार प्रोत्साहित करनेके लिए श्रच्छा साधन बनी हैं। साहित्यिक मूल्यकी अपेक्षा उनका सामाजिक मूल्य अधिक है ।
-
६३
·