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बाबू अजितप्रसाद, एम० ए०, एल-एल० वी०
बाबू अजितप्रसादजीका जन्म सन् १८७४में हुआ। आपने सन् १८६५में एम० ए०, एल-एल० वी०की उपाधि प्राप्त करके वकालत प्रारम्भ की थी। श्राप कई वर्षों तक सरकारी वकील और बादमें बीकानेर हाईकोर्ट के जज रह चुके हैं। __आप स्याद्वादमहाविद्यालय, ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम, सुमेरचन्द जैन होस्टेल, जैनसिद्धान्त-भवन और दिगम्बर जैन-परिषद्के संस्थापनमें उत्साही पदाधिकारीके रूपमें सम्मिलित रहे हैं।
आप सन् १९१२ से अंग्रेजी 'जैनगजट'के सम्पादक और सन् १९२६ । से 'सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस,' लखनऊके सञ्चालक हैं, जहाँसे अंग्रेजीमें ११ सिद्धान्त अन्य प्रकाशित हो चुके हैं।
श्री अजितप्रसादजी कविरूपसे विख्यात नहीं हैं। विशेष अवसरोंपर मित्रोंके अनुरोधसे, खासकर उर्दूमें, कुछ लिख देते हैं। लेकिन जो कुछ लिखते हैं उसमें कुछ पद-लालित्य और विशेष अर्थ गम्भीरता होती है।
आपने प्रायः सेहरे लिखे हैं। ___उनकी उर्दू-हिन्दी मिश्रित एक धार्मिक रचनाके कुछ अंश यहाँ दिये जा रहे हैं। दूसरी कविता 'यह बहार' उर्दू-शैलीको सुन्दर रचना है, जो एक सेहरेका अंश है। .
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