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________________ संसार अपनी सुख-दुखकी लीलासे बना हुआ सारा संसार । अणु-अणु परिवर्तित है प्रति पल इसीलिए कहलाता चंचल सत्त्व रूपसे अचल, विमल है नित्यानित्य विचार; अपनी सुख-दुखकी लीलासे बना हुना सारा संसार । अभी जन्म है, अभी मरण है अभी त्रास है, अभी शरण है ! धूप-छाँह सम, हास-अश्रुमय जीवनका संचार ; अपनी सुख-दुखकी लीलासे वना हुआ सारा संसार । अभी बाल है, अभी युवा है अभी वृद्ध है, अभी मुवा है। कसा रे परिवर्तनमय है यह निष्ठुर व्यापार ; अपनी सुख-दुखकी लीलासे बना हुआ सारा संसार । यहाँ कहाँ रे शान्ति चिरन्तन कर्म-दलोंका निविड़ निवन्धन । 'सूर्यभानु' है संग निरन्तर सृजन और संहार ; अपनी सुख-दुखकी लीलासे बना हुआ सारा संसार ।
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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