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फिर क्यों मुझ अछूत को मुंह में देते हो महराज",
सुनकर उसके वोल हुई हा, मुझको भारी लाज ।, खानेको वैठा, भोजनमें ज्यों ही डाला हाथ,
त्योंही भोजन बोल उठा चट विकट हँसीके साथ"नालीका जल हम सवने था किया एक दिन पान,
___अतःनीच हम सभी हुए फिर क्यों खाते श्रीमान् ?" एक दिवस नभमें अधोंकी देखी खूब जमात,
जिससे फड़क उठा हर्षित हो मेरा सारा गात । में यों गाने लगा कि "प्रायो, अहो, सुहृद धनवृन्द,
वरसो, शस्य वढायो, जिससे हो हमको श्रानन्द ।" वे बोले, "हे वन्यु, सभी हम है अछूत श्री नीच, .
क्योंकि पनालीके जलकण भी हैं हम सबके बीच । कही अछूतोंमें ही जाकर बरसेंगे जी खोल ।
उनके शस्य बढ़ेंगे, होगा उनको हर्प अतोल ।" में वोला, "मैं भूला था, तव नहीं मुझे था ज्ञान,
नीच ऊँच भाई-भाई हैं भारतकी सन्तान । होगा दोनों विना न दोनोंका कुछ भी निस्तार,
___ अव न करूंगा उनसे कोई कभी बुरा व्यवहार ।" वे बोले, "यह सुमति प्रापकी करे हिन्दका त्राण,
उनके हिन्दू रहनेमें है भारतका कल्याण । उनका अव न निरादर करना, बनना भ्रात उदार,
भेद भाव मत रखना उनसे, करना मनसे प्यार ।"
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