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श्री 'रतन' जैन
कविताके क्षेत्रमें उन्नतिकी और शीघ्रतासे क़दम बढ़ानेवाले नवयुवकों में श्री रतनकुमार जैनका नाम विशेष रूपसे उल्लेखनीय है । यद्यपि श्रापका उपनाम 'रतन' या 'रत्न' नहीं है, फिर भी आप अपनी कविताओंके साथ यही नाम छपवाते हैं ।
श्री 'रतन' जैन, जयसिंहनगर (सागर) के रहनेवाले हैं; श्रीर इस समय स्याद्वाद महाविद्यालय काशीमें अध्ययन कर रहे हैं ।
यद्यपि आपके गीतोंमें वेदना और निराशाको स्पष्ट छाप है किन्तु जीवनके निरीक्षणका दृष्टिकोण एकान्तवादी नहीं है । हमें आशा करनी चाहिए कि वह अपनी 'परिचय' शीर्षक कविताके अनुसार ही अपने afa - जीवनका ध्येय बनायेंगे :--
'मैं कवि हूँ कविता करता हूँ, मुरदोंमें जीवन भरता हूँ ।'
मुझसे कहती मेरी छाया
सोच सम्हल पग धरना मगमें, काँटे फूल विछे डग डगमें,
जीवनके उत्थान-पतनमें उलझ न जाय कहीं यह काया
,
मुझसे कहती मेरी छाया ।
प्रिय वसन्तके नवल रागमें, यौवन सरसिजके परागमें,
भूल न जाना पथिक कहीं तू अंगारोंकी जलती छाया,
मुझसे कहती मेरी छाया ।
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