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श्री गेंदालाल सिंघई, 'पुष्प' साहित्यभूषण
श्री गेंदालाल सिंघई, चन्देरी (ग्वालियर)के रहनेवाले हैं और श्री चम्पालाल 'पुरन्दर के अनज हैं। प्रापने १३ वर्षको अवस्थासे ही कविता लिखना प्रारम्भ कर दिया था। आपकी भावपूर्ण रचनाएँ पहले जैन-पत्रोंमें प्रकाशित होती रहीं, फिर आपने 'नवयुग'के लिए विशेष रूपसे कविताएँ लिखीं। अब प्रकाशित नहीं कराते । इनका एक कविता-संग्रह और एक कान्य प्रकाशनकी प्रतीक्षा कर रहा है।
आपकी कविताके भाव सुवोध होते हैं, क्योंकि भाषा आडम्बरहीन होती है। और प्रेम-मूलक कविताएँ प्रायः सभी सुन्दर हैं।
कभी कभी मैं गा लेता हूं कप्ट कहीसे आ जाता है, दिल दुखसे घबरा जाता है, अन्तस्तलकी पीडाको मैं
___ गाकर ही सहला लेता हूँ। इस विस्तृत जगतीके पटपर चित्र खिंच रहे नित नूतनतर , नया न कुछ कहकर दृश्योंको
गब्दोंमें दुहरा देता हूँ। कभी-कभी आशा जा-जाकर लौटी साथ निराशा लेकर , वुरा नही इसको कहता हूँ,
__ दोनोंको अपना लेता हूँ। कभी-कभी मै गा लेता हूँ।
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