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भंकृत होगी वह स्वर-लहरी,
आत्मशक्ति जागृत हो जिससे ; करे भेंट नव जीवन ज्योती,
जय संगीत विश्व
यह संसार
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उस पार
निर्जन और शून्य-सा थल हो, दूर बहुत ही कोलाहल हो, पर निर्भरके अविरल रवसे, रहित नहीं वह प्यारा वन हो,
गायेगा;
बदल जायेगा ।
ऐसा सुन्दर शुभ प्रदेश हो, हो अपना छलिया जग
घर
द्वार ;
पार ।
मलय समीर जहाँ करती हो, हर्षित श्री विषाद हरती हो, इस मायावी जगकी दूषित पवन जहाँ नहि आ सकती हो,
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ऐसी मन्द सुगन्धित प्यारी, मिलती
रहे
बयार ;
छलिया जगके
पार ।
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