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श्री कुन्थकुमारी, बी० ए० (ऑनर्स), बी० टी०
श्राप एक प्रतिभाशालिनी और विदुपी महिला हैं । श्रापने अंग्रेजी साहित्यके विशाल अध्ययनके साथ मातृभाषाके साहित्यका भी मनन किया है । देहली और पंजाब विश्वविद्यालयकी वी० ए० और वी० टी० परीक्षाओं में श्रापने प्रान्तको महिलाओं में सर्वप्रथम पद और स्वर्णपदक प्राप्त किया था । इन्होंने अंग्रेजी-हिन्दी के अनेक अखिल भारतीय वाद-विवादों में भी प्रथम पारितोषिक प्राप्त किया है । आप दो वर्ष तक लाहोरके हंसराज महिला ट्रेनिंग कालेजमें वी० टी० श्रेणीकी प्रोफ़ेसर रह चुकी हैं।
श्री कुन्यकुमारी हिन्दीमें लेस, कहानी और कविताएँ लिखती हैं । त्रापकी कविताओं और लेखोंमें रचनाका सौन्दर्य और कल्पनाकी कोमलताका दर्शन होता है । आप प्रसिद्ध शिक्षा-प्रेमी, देहलीके जैन कन्या - शिक्षालय प्रमुख संस्थापक पंडित फतेहचन्द जैन खजांचीकी पुत्री और श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन, एम० ए०की धर्मपत्नी हैं ।
मानस में कौन छिपा जाता ?
मानसमें कौन छिपा जाता ?
जीवनमें ज्वार उठा करके, मानसमें कौन छिपा जाता ; मेरे उन्माद-भरे मनको अनजानेमे वहला जाता ! मानसमें कौन छिपा जाता ?
दे क्षण सुख-दुखकी झाँकी, इस पल विराग, उस पल रागी ; उठती मिटती-सी पीड़ाको उलझा जाता, सुलझा जाता । मानसमे कौन छिपा जाता ?
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