________________
निराशाके खरमें
साथी, मिट गये अरमान। . कण्ठ शुष्क हुआ, करूं क्या भग्न स्वर सन्वान' ;
साथी, मिट गये अरमान । अोज अब तनमें नहीं है, स्फूर्ति इस मनमें नहीं है, उचित अनुचितका नहीं है अव हृदयको भान;
साथी, मिट गये अरमान ।। सूझता पथ ही नहीं है, सोच लूं पर मन नहीं है , हो चुका है लुप्त मेरा हित-अहितका ज्ञान ;
साथी, मिट गये अरमान । लुट गया मैं आज, साथी, रखो मेरी लाज साथी , हुआ अब मेरे हृदयसे सौख्यका अवसान ;
साथी, मिट गये अरमान। . प्यार धोखेसे जगत्ने लिया, कुचला निर्दयीने , मिला जीवन में मुझे बस, दुःखका वरदान ;
साथी, मिट गये अरमान । मिला है यह दर्द जगमें, सह सकूँगा अव न कुछ मैं , आज पागल हो रहा हूँ, जगत्से अनजान ;
साथी, मिट गये अरमान । खोजताहूँ उस निठुरको,चल दिया जो छोड़ मुझको, विलखता हूँ आज पथ-पथ ओ मेरे भगवान् ;
साथी, मिट गये अरमान । नाशके दुःखसे कभी दवता नहीं निर्माणका सुख , मानते तो, प्रभो, मेरा कीजिये उत्थान ;
साथी, मिट गये अरमान ।
:- १८६ -