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पहले चारों ओर जहाँ
साम्राज्य शान्तिका था फैला; वृद्धि नित्यं पाती थी 'कमला'
ज्यों पाती है 'चन्द्रकला'।४ वहाँ दीन दुखियों भूखोंका
आज विलखना सुनती हूँ; भारतीय माँका सम्बोधन
'अवला' सुन सिर धुनती हूँ।५
नायक बनकर मेरा भाई
सवका शुभ्र सुधार करे; देश-जातिकी करे समुन्नति,
अपना भी उद्धार करे ।६
पथसे विचलित मेरा भाई
कभी नहीं होने पावे; सज्जनता- रूपी साँचे में
ढले, सदा ढलता जावे १७ इतनी कृपा करो, हे रोटी,
यह उपकार न भूल सकूँ; जीवन वने वन्धुका उज्ज्वल,
. कीर्ति श्रवणकर फूल सकूँ।
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