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विरहिणी
पिय न आये, पियूँ कब तक , यह निरन्तर धैर्य - प्याली ; व्यथित मनको सान्त्वना दूं, किस तरह अव कहो ाली ।१
हृदय-दीपक हाथसे ढक , चिर-समयसे. जी रही हूँ; मिलनकी आशा रखे ,
ममता-सुधा-रस पी रही हूँ।२ किन्तु समता-सहचरी भी, ऊवकर मुझसे किनारा ; कर गई, अव है न मुझको, एक भी जीवन-सहारा ।३
तप्त तनकी उष्म आहे , हृदय - दीपकको वुझाने ; कर रही हैं यत्न भरसक ,
आज इसपर विजय पाने ।४ टिमटिमाता दीप यह, बतला, सखी, कैसे बचाऊँ ; पागका अब डाल अंचल , ओटमें कैसे छिपाऊँ ? ५
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