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महक उठा फूलोंसे उपवन . विघट गया तम तोम निशाका , उपा नटी उठ करके घाई; अलसाय अरुणाके दृग ले,
कलिकाओंके सम्मुख आई। उन्हें जगाने हो हर्पित मन, महक उठा फूलोंसे उपवन ।
ऊपाके मृदु आलिंगनसे , कलियोंने भी आँखें खोली ; आलसका नय करनेके हित ,
आँखें ओसविन्दुसे धो ली। मुस्काये फिर दोनों आनन, महक उठा फूलोसे उपवन ।
दृश्य देख दोनों सखियोंका , नव प्रभातके रम्य पटलपर; सुरभित कलिकाओंसे मिलने,
वायु, वेगसे आई चलकर। करने कलियोंका आलिंगन, महक उठा फूलोंसे उपवन ।
अपना तन सुरभित करनेको , लिपट गई खिलती कलियोंते; फिर गुंजित भ्रमरोंको देखा,
हँसकर यह पूछा अलियोस'करते क्यों फूलोंका चुम्वन', महक उठा फूलोसे उपवन ।
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