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मेरी
मार्गहीन यात्राएँ,
हैं लक्ष्य गतिहीन, सखी ;
ये मगमें करुणाके टुकड़े, छोड़ इन्हें, मत बीन, सखी !
फूल सुगन्धित तू चुन ले, शूलोंसे भर मेरी झोली ; पर आशा - लतिकाकी मादकतर स्मृतियाँ मत छीन सखी !
सम्बोधन
जागृतिके उज्ज्वल मन्त्रोंसे
जीवन-सूत्र पिरो लो ;
तोलो ।
देश-भक्तिकी त्याग-तुलापर
अपना जीवन
कर्मक्षेत्रमें लेकर आओ
वह स्वप्नोंका जीवन :
आदर्शो में परिणत हो फिर
शून्य
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भावना
तन मन धन न्योछावर करके
माँके
अर्पण हँस-हँसकर हो जाओ
भारतकी
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वन्धन
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पावन ।
खोलो ;
जय बोलो ।