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श्री लज्जावती, विशारद
श्री लज्जावतीजी समाजकी उन जागृत महिलाओंमेसे हैं जो यथाशक्ति देशकी सेवा और साहित्यकी साधनामें सदा तत्पर रहती हैं। श्राप जव मेरठमें थीं तो वहाँकी महिला समितिको मन्त्रिणी थी और अब मथुरामें जहाँ अापके पति वा० जगदीशप्रसादजी अोवरसियर हैं, नारी समाजको उन्नतिके कार्योंमें योगदान देती हैं। प्राप'वीर जीवन' और 'गृहिणी कर्तव्य' नामक दो पुस्तकोंकी लेखिका है।
श्रापकी कविताओंमें विषयके अनुसार ही शब्दोंका चयन होता है, और भावोंमें गम्भीरता रहती है। वेदनाके भावोंको चित्रण करते हुए इनकी कविता विशेष रूपसे सजीव हो उठती है। 'फूल सुगन्धित तू चुन ले, शूलोंसे भर मेरी झोली' कितनी सुन्दर पंक्ति है !
आकुल अन्तर मैं इस शून्य प्रणय-वेदीपर , किन चरणोंका ध्यान करूँ; मृत्यु-कूलपर बैठी कैसे अमर क्षितिज निर्माण करूं?
विश्वासोंपर वसा हुआ है, जगके स्वप्नोंका संसार; सखी, भाग्यकी अस्थिरतानोंपर किसका आह्वान करूँ ?
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