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पीनेको मिलता हमें दुग्व व्यञ्जन षट् रस संयुक्त सूव । पोषक पदार्थ हम खाते हैं जिनसे बढ़ता है खून खूव ।१७
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वस्त्राभूषण शिरसे पग तक
करते रहते शोभित शरीर । बैठी रहती मानव समाज इसलिए कि हम सव हैं अमीर |१८
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पर ठाठाठ इनके सारे तेरी ही हिम्मतपर किसान ! इनका सुख भी अवलम्बित है तेरी ही छातीपर किसान |१९
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इनकी शोभा इनकी इज्जत इनके सारे सुख श्रविनश्वर । तेरे तनपर तेरे मनपर
तेरे धनपर ही हैं निर्भर 1२०
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इसलिए उठो सोचो समझो श्रो मेरे जीवनधन किसान ! तेरे ही ऊपर अवलम्बित गान्धीका होना मूर्तिमान | २३
उत्तुङ्ग महल, उन्नत विचार तेरी ही दमपर होते हैं । तेरे अनाजको खाकर ही सुखकी 'निद्रामें सोते हैं । २१
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टकटकी लगाये दिनकर भी तेरी हिम्मतको ग्रांक रहा तेरी ही दमको रे किसान ! संसार अखिल में झांक रहा । २२ X
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