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श्री सुमेरु चन्द्र शास्त्री, 'मेरु'
आप बहराइच (यू० पी० ) के रहनेवाले हैं । व्याकरण, न्याय और साहित्यके विद्वान् हैं | खड़ी वोलीमें सवैया श्रादि छन्दोंमें बहुत सुन्दर रचना करते हैं । स्थानीय साहित्यिक क्षेत्रमें आपका बहुत श्रादर है । यह 'कवि संघ' बहराइचके मन्त्री हैं । समस्या-पूर्ति विशेष रूपसे सफलतापूर्वक करते हैं।
शारदा-स्तुति
वारदे, निहारि दे कृपाकी कोर एक बार, कल्पनामें केशव कवीन्द्र वन जाएँ हम ; वीररस भूषणकी व्यञ्जित पदावलीकी
योज-भरी प्रतिमाका रूपं दिखलायें हम ; 'सूर' सी सरल रस- रोचनामें सिद्धहस्त
'तुलसी' सी चारु चरितावली सुनायें हम ; 'मेन' कवि वीणापाणि वीणा झनकार दे तो मञ्जुल पताका कविताकी फहरायें हम |
सुवर्ण उपालम्भ
नहि दुःख जरा भी हुआ मनको
जब खानसे खोद निकाला गया ; नहि कान्ति मलीन भई तब भी
जब ज्वालमें डाल तपाया गया । 'उ' भी निकली न जुवांने मेरी
जब रूप कुरूप बनाया गया ; पर दुःख्नु है तुच्छ महा घुंवचीफलचे यह तोलमें लाया गया ।
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