________________
'आंसूसे कौन आ रहा है तुम जिसका , स्वागत करने आए हो। चुन-चुन मुक्तामणि सुन्दरतम , हार सजाकर लाए हो ॥१ .
कहो, आज क्यों प्रकट हुए हो , भग्न हृदयके मृदु उद्गार । कैमे ढुलक पड़े हो वोलो, कसा पीड़ाका उद्भार ॥२
अरे वेदनाके सहचर तुम तप्त हृदयके मद्ध सन्ताप । उमड़ी पीड़ाकी सरिताके ,
कैसे अभिनव अनुपम माप ॥३ छलक पड़े तुम, दुलक पड़े तुम , मन्द-मन्द अविरल गति धार । इन विपढायोंके समक्ष क्या ,
मान चुके हो अपनी हार ॥४ हार! नहीं, यह विजय तुम्हारी , महनशीलताके सुविचार ।
आँख उठाकर देखो, रोता हमदर्दसि यह संसार ||५
- १४७ -