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वह दृश्य आज भी कम्पमान आता समक्ष जीवित सप्राण, अनजान प्रतिसे भयाक्रान्त शंकित हो उठते युगल कान,
वह
,
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वे नवयुगके
नवयुवक-प्राण,
वे सजग, गठिततन श्री' सज्ञान, झंडा करमे ले स्वाभिमान, बढ़-चढ़ करते थे शीस-दान,
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वह क्रन्दन-स्वर, वह रुदनगान , वह पीड़ा, वह त्रस्ताभिमान, सन्तप्त मान, संत्यक्त जान, संकल्पशक्तिसे शक्त प्राण ,
अनुदान ।
वह राष्ट्र- मान ।
अव भी समान ।
हम शान्त रहें या रहें क्लान्त, हम सुखी रहें या दुःख उद्दान्त, हम मुक्त रहें या पराक्रान्त, स्मरण रहेगा यह वृत्तान्त,
यदि देश ज्ञान ।