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दीप-निर्वाण (कन्याके स्वर्गवासपर)
पलमें हुआ दीप निर्वाण । जीवनका पूरा प्रकाश था , प्राशाओंका मधुर हास था ,
प्रेम-पयोनिधिका विलास था , दो हृदयोंके स्नेह-मिलनका सुन्दर फैल था वह अनजान ।
जव तक श्वासा तब तक आगा , कुटिल जगत्का यही तमाशा ,
क्षणमें आशा हुई निराशा , ज्योति मनोहर क्षीण हो गई, नष्ट हुए उरके अरमान ।
जव तक नश्वर देह न छूटी ,
तव तक ममता-रज्जु न टूटी , . हाय, कालने कैसी लूटी , अभी-अभी सुख-सेज रही जो वह भी अव धन गई मसान ।