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श्री अक्षयकुमार, गंगवाल
आपने अपना पद्यात्मक परिचय इस प्रकार प्रेषित किया है--- "परिचय मेरा है क्या, जो दूं लेकिन तेरा है आदेश , इसीलिए कुछ लिख दूँ, माता, अजयमेरु है मेरा देश , ग्राम सिराना है छोटा-सा, उसमें है मेरा लघु धाम , नेमिचन्द्रजीका मै सुत हूँ, 'अक्षय' है मेरा लघु नाम , मारवाड़में रहता हूँ अब है कालू अानन्दपुर ग्राम , यहां किया करता हूँ मातः अध्यापन जैसा कुछ काम । हिमसे भी है अतिशय शीतल, 'ज्वालाप्रसाद' मेरे मित्र , मार्गप्रदर्शक है मेरे के, प्रौ' उनका अति विमल चरित्र । बस इतना तो ही होता है, कविताकारोंका इतिहास ,
सुख-दुखकी बातें लिखना तो होगा यहाँ सिर्फ़ उपहास।" गंगवालजीकी कविताएं जन-पत्रोंमें प्रायः छपती रहती है। श्राधुनिक शैलीको संवेदनाशील और क्रान्तिके भावोंको जगानेवाली कविताएँ आप सुन्दर लिखते है।
रेमन!
रे मन, मन ही मनमे रम रे। विकसित होकर प्राण गवाँता उपवनका उद्यम रे । रे मन०
है देवी वरदान रूप सौन्दर्य अनूठा मिलना ,
किन्तु रादा पीड़ित देखी निर्धनकी सुन्दर ललना , नोंच-नोंच पीड़ित करते हैं कामी, धनिक, अधम रे । रे मनल
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