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समान लकीर होती है । ५४
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[] थोड़ा सब्ज होता है । यह तीन प्रकार का है (१) सोनाकस (२) लोहाकस (३) चांदीकस । अन्त के ढ़ो तो मिलते हैं। प्रथम का उपलब्ध नहीं होता । ४८ कसौटी - काला रंग । इससे सोने की कस की परीक्षा होती है । ४६ दारचना - चने की दाल के समान पीला तथा लाल टिकिया के मुताबिक स्याह जमीन पर होता है । ५० हकीके कुलबहार - सब्जपन के साथ जद मिला होता है। मुसलमान जपने की माला बनाते हैं। ये पत्थर जल में होता है । ५१ हालन – गुलावी मैला । हिलाने से हिलता है । ५२ सिजरी - सफेद ऊपर श्याम दरख्त दीखता है । ५३ सुवेन जफ - सफेद में बाल के कहरवा - पीला रंग का । जिसका वोरखा तथा माला बनती है ५५ झरना - मटिया रंग का । जिसमें पानी देने से सब पानी भर जाता है । ५६ संगेवसरी - आंख के सुरमे में पड़ता है। रंग काला होता है । ५७ दांतला - जरदपन लिये सफेद । पुराने शंख की माफिक होता है । ५८ मकड़ी - सादापन लिये हुए काला | ऊपर मकड़ी के जाल के समान । ५६ संगीया -- शंख के समान सफेद । इसका घडी कालाकेट बनता हैं । ६० गुदरी - नाना प्रकार के रंगवाला होता है । इसे फ़कीर लोग पहनते है । ६१ कासला – सब्जपन लिये सफेद होता है । ६२ सिफरी – सन्जपन लिये आस्मानी रंग का होता है । ६३ हदीद - भूरापन लिये स्याह, वजन का भारी होता है। मुसलमान इसकी तसबीह बनाकर जाप करते है । ६४ हवास – सोनापन लिये सव्ज होता है । औषधियों में काम आता है । ६५ सींगली - जाति माणिक (माणक) की । स्याही और सुख मिला हुआ रंग होता है । ६६ ढेडी - काला रंग । इसके खरल तथा कटोरे बनते हैं । ६७ हकीक - अनेक प्रकार के रंगों वाला, जिसका घड़ी का मुट्ठा, कधोरे एवं खिलौने वनते हैं । ६८ गोरी - अनेक प्रकार के रंगों वाला तथा सफेद सूत होता है। इसके कटोरे तथा जवाहर तौलने के बाट बनते हैं । ६६ सीचा - काला रंग । इसकी नाना प्रकार की मूर्तियां बनती हैं । ७० सीमाक- लाल, जर्द एवं कुछ स्याहमाइल होता है । ऊपर सफेद, जर्द और गुलाबी छींटा होता है। इसके खरल तथा कटोर बनते हैं । ७१ मूसा - सफेद रंग । इसके खरल तथा कटोरे वनते हैं । ७२ पनधन --- कुछ सब्जपन लिये काले रंग का होता है । ७३ अमलीया - कुछ कालापन लिये गुलाबी रंग का होता है । ७४ दूर – कत्थे के समान रंग का होता है। इसके खरल बनते हैं । ऊपर सफेद छींटा । इसके खरल बनते हैं । ७६ स्वारा - सम्पन लिये काले रंग खरल बनते हैं । ७७ पायजहर - सफेद पारे के समान रंग का होता है। विष के लगाने से घाव सूख जाता है । ७८ सिरखड़ी-मिट्टी के समान रंग का होता है। पर घिस कर लगाने से घाव सूख जाता है । ७६ ज़हर मोहरा - कुछ सफेदपन लिये सब्ज रंग का होता है। किसी विप मिश्रित चीज में इसको रख देने से विष का दोष जाता रहता है। ८० रतुवा - लाल रंग का । जिसको रात्रि में ज्वर आता हो तो गले में बांधने से आराम होता है । ८१ सोनामक्खी - नोले रंग का । औषधियों मे काम आता है । ८२ हज़रतेयहूद - सफेद मिट्टी के समान। इससे मूत्रकी बीमारी में लाभ होता है । ८३ सुरमा—काला रंग । अंजन के काम आता है । ८४ पारस - काला रंग। इसको लोहे के लगाने से लोहा सोना हो जाता है।
७५ तिलीमर - काला का होता है। इसके
घाव पर घिस कर
खिलौने बनते हैं। बाव
मोती की जातियां तथा उनके नाम
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गजमुक्ता । मत्स्य मोती । सपमोती । वांसभिरेके मोती । शंखकेमोती । खानके मोती। सूअर के मोती । * लोहे के टुकड़े पर नींबू के रस को निचोड़ कर रगटने से यह तीन कस होते हैं। दरद गुरटे में कमर में माने से आराम होता है ।